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मस्ती भरी शायरी.



यहाँ हर दिया बुझने पर मजबूर है,
और तुम रौशनी की दरकार करते हो,
खुदा के कैसे बंदे हो तुम जो,
हर सहरी पर इफ्तार करते हो.

वो वक़्त भी गुलाम था
 वो हुस्न भी कमाल था,
हर गली मे मचा बवाल था,
क्योंकि मेरे शहर मे उसका ननिहाल था.

©नीतीश तिवारी।



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